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Archive for મે 11th, 2009

मृत्यु के बारे में
हम सिर्फ़ भौतिक शरीर को ही देख सकते हैं, अनुभव कर सकते हैं. आत्मा का हमें अनुभव नहीं है, साक्षात्कार नहीं है. वह हमारे लीए सिर्फ़ एक शब्द मात्र ही है. इसीलिए हम सब शरीर से बंधे हुए हैं. हम सर्वशक्ति वाले नियंता के निर्णय को या कर्तृत्व को समझने के लिए असमर्थ हैं.
भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं, “हकीकत में तुम कुछ भी करते नहीं हो, तुम सिर्फ़ उपकरण हो, निमित्त हो. तुम कर्तृत्व का मिथ्या भाव धारण कर लेते हो. सब भौतिक शरीरें मृत ही हैं, अस्तित्व सिर्फ़ आत्मा का ही है.”
भगवान कहते हैं, शरीर नष्ट होनेसे आत्मा नष्ट नहीं होती और ऐसा भी नहीं है कि शरीर बचने से आत्मा को बचा सकते हो. आत्मा अनंत चैतन्य महासागर में उत्पन्न हुई एक लहर है, जो मरने और बचने के अतिरिक्त ही है.
भगवान ने यह सब गीता के दुसरे अध्याय में बताया है, जिसका हम चयन करते हैं. आप सब ध्यानस्थ होकर गतात्मा की यात्रा सुगम हो ऐसी इस प्रार्थना में संमिलित हों ऐसा नम्र निवेदन है.

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